दीपक मिश्रा
जनवरी भारतीय संस्कृति एवं परम्परागत ज्ञान समस्या समाधान मे संजीवनी है। आयुर्वेद एवं खेल भारतीय संस्कृति की पुरातन विद्या है। दैनिक एवं दैहिक समस्याओं का समाधान परम्परागत ज्ञान के माध्यम से वर्तमान वैज्ञानिक पद्वतियों से अधिक सरल एवं सुगम है। जिसके द्वारा असम्भव एवं असाध्य रोगो का निदान तक संभव है। गुरुकुल कांगडी समविश्वविद्यालय, हरिद्वार के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ0 शिवकुमार चौहान ने अभ्युदय संस्था, सहारनपुर द्वारा बैंकेट हॉल, सहारनपुर मे भारतीय संस्कृति एवं परम्परागत ज्ञान पर आयोजित कार्यशाला केे उदघाटन अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप मे यह बात कही। उन्होने कहॉ कि भारत का अभुतपूर्व वैभव एवं प्राकृतिक संसाधनों की सम्पन्नता भारतीय संस्कृति का मूलभूत आधार रही है। जिसने वसुधैव कुटुम्बकम के भाव से पूरी धरती को परिवार मानकर उदारभाव से विश्व कल्याण की परिकल्पना को साकार किया है। दुनिया मे कही भी आपत्ति, दुर्धटनाएं, प्राकृतिक आपदा तथा अन्य संकट की घडी मे भारत ने सबसे पहले मददगार बनकर हरसम्भव सहायता मुहैया कराने मे मित्रता का परिचय दिया है। वर्तमान समय मे भारत का दुनिया मे बढता गौरव एवं मान-सम्मान भारतीय संस्कृति एवं परम्परागत ज्ञान की बदौलत ही है। भारत ने अपनी मूल प्रकृति तथा जडों से जुडे रहने के कारण यह मुकाम हासिल किया। दुनिया के देशों मे ऐसे अनेक उदाहरण है जो अपनी संस्कृति एवं सभ्यता को भुलाकर दुनिया के मानचित्र से विलुप्त हो गई। उन्होने युवाओं का आहवान किया कि अपने मूल मे रची बसी संस्कृति एवं प्राचीन ज्ञान को कभी भूलकर भी छोडने का प्रयास नही करना चाहिए। जीवन की प्रवृत्ति मे खेल को समायोजन एवं श्रम के रूप मे तथा दैहिक प्रबंधन मे आयुर्वेद को मूल मे रखने से ही मानवता का कल्याण संभव है। कार्यशाला की अध्यक्षता शिक्षाविद्व प्रो0 रणवीर सिंह ने तथा मुख्य आतिथेय प्रो0 रमाकान्त दुबे ने की। कार्यशाला मे अनेक विद्याओं के शिक्षाविद्व, समाजशास्त्री, इतिहासकार एवं साहित्य जगत की हस्तियों ने अपने विचार वक्त किये। संचालन डॉ0 दीपा पाण्डेय तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ0 रविश कुमार द्वारा किया गया।