लक्ष्य तथा दिशा के बिना कल्पना का कोई अस्तित्व नही होता

दीपक मिश्रा

 

हरिद्वार-8 सितम्बर इंसान के सोचने-समझने की सीमा उसकी कल्पना शक्ति से संचालित होती है। लक्ष्य तथा दिशा के बिना कल्पना का कोई अस्तित्व नही होता। गुरुकुल कांगडी समविश्वविद्यालय, हरिद्वार के शारीरिक शिक्षा एवं खेल विभाग द्वारा प्रशिक्षु अध्यापकों के प्रशिक्षण के लिए कल्पना शक्ति विकास पर कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला का राष्ट्रगान द्वारा शुभारम्भ किया गया। शुभारम्भ अवसर पर कुलसचिव प्रो0 सुनील कुमार ने प्रशिक्षु अध्यापकों को सम्बोधित करते हुये तर्क, कुतर्क तथा वितर्क से कल्पना शक्ति की उपयोगिता समझाई। कहॉ कि ज्ञान-विज्ञान तथा अनुसंधान के क्षेत्र मे तर्क से ज्ञान बढता है। ऐसी समझ के आधार मे परिवर्तन आने पर वैज्ञानिक निष्कर्ष मे भी परिवर्तन आ जाता है। कीटनाशक के उपयोग का उदाहरण देते हुये प्रो0 सुनील कुमार ने कहॉ कि एक समय कीटनाशक का प्रयोग किसान के लिए उपयोगी था, परन्तु अब उनका उपयोग हानिकारक माना जाता है। कहॉ कि तर्क मे मौलिक प्रतिमान ही बदल जाते है। कुतर्क का अर्थ है गलत अथवा विसंगत तर्कए जिस में आशय ही ग़लत होता है। ऐसी स्थिति में तर्क लगाने का एकमात्र उद्देश्य दूसरे में ग़लती खोजना या निकालना होता है। अंतर्मन को बोध होता है कि यह बात सही नहीं हैंए फिर भी तर्क के द्वारा आप उस बात को सही सिद्ध कर देते हैं। आधे दरवाज़े के खुले रहने का अर्थ है आधे दरवाज़े का बंद रहना। वितर्क एक ऐसा विशेष तर्क हैए जिसे विश्व में विश्वास जगाने और सत्य को समझाने के लिए उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिएए पातंजलि योग सूत्र का ज्ञान।
कार्यशाला मे विभागीय प्रभारी एवं एसोसिएट प्रोफेसर डॉ0 शिवकुमार चौहान ने कल्पना को व्यक्ति के जीवन की रचनात्मक एवं संगठनात्मक शक्ति बताते हुये कल्पना को बौद्विक विकास की संजीवनी बताया। जिसके बिना व्यक्ति का जीवन नीरस एवं ऊर्जा विहीन रहता है। कार्यशाला मे प्रशिक्षु अध्यापकों की कल्पना शक्ति को परखने के लिए विज्ञान, सामान्य ज्ञान, कम्पयूटर, खेल, शारीरिक शिक्षा एवं सामान्य ज्ञान से जुडे प्रश्नों पर जानकारी प्राप्त की गई। के0डी जादव हाउस के प्रशिक्षुओं ने सर्वाधिक 15 प्रश्नों मे 12 के उत्तर सही देकर प्रथम स्थान प्राप्त किया। जबकि दयानंद हाउस एवं मिल्खा हाउस के बीच मुकाबला 10 अंकों की बराबरी पर रहा। निर्णायक मंडल ने दोनो हाउस को संयुक्त उप-विजेता घोषित किया। कार्यक्रम का संयोजन डॉ0 अनुज कुमार तथा निर्णायक मंडल मे गोविन्द परिहार तथा संतोष थपलियाल ने भूमिका निभाई। कार्यशाला मे डॉ0 प्रणवीर सिंह, सुनील कुमार, दुष्यन्त सिंह राणा, सुरेन्द्र सिंह, राजेन्द्र सिंह, कुलदीप आदि उपस्थित रहे।

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